‘कीर्त्तन-घोषा’
1 min read✍ लिप्यंतरण एवं अनुवाद: डॉ. रीतामणि वैश्य
‘कीर्त्तन-घोषा’ असम के प्रसिद्ध कवि महापुरुष शंकरदेव की अनन्य रचना है। यह रचना शंकरदेव की काव्य-प्रतिभा का श्रेष्ठ निदर्शन है। नवधा भक्ति में से शंकरदेव ने श्रवण और कीर्त्तन को प्रधान माना है। भगवंत के नाम या लीला को जब गाया जाता है, उसे कीर्त्तन कहते हैं। शंकरदेव ने ‘कीर्त्तन-घोषा’ के खंडों की रचना की थी; पर उनके संग्रह और संस्थापन का भार अपने प्रिय शिष्य माधवदेव को दिया था। शंकरदेव की मृत्यु के बाद माधवदेव ने संग्रह का यह काम भाँजे रामचरण ठाकुर को सौंपा था। माधवदेव की आज्ञा के अनुसार रामचरण ठाकुर ने ऊपरी और निचले असम के अनेक स्थलों का भ्रमण कर कीर्त्तन के खंडों का संग्रह कर ‘कीर्त्तन-घोषा’ के संकलन का काम सम्पूर्ण किया था। ‘कीर्त्तन-घोषा’ 30 खंडों की समष्टि है। इनमें से 28 खंड शंकरदेव द्वारा रचित हैं। शंकरदेव द्वारा रचित ‘रुक्मिणीर प्रेम-कलह’ और ‘भृगु-परीक्षा’ ‘कीर्त्तन-घोषा; के अंतर्गत नहीं माने जाते।