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October 14, 2024

असम बंद

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✍ संजीव मण्डल

(1)

कमल को आज बहुत दु:ख है ।

रास्ते में उसने एक तबला देखा । गौर से देखने पर वह तबला नहीं, पेट है प्रमाणित हुआ । पेट पर उँगली फेरते हुए देखकर यह शंकर है संदेह नहीं रहा । मुँह से बाहर को निकले दो दाँतों ने यह प्रमाणित किया कि शंकर के दाँत हैं और सारे दाँत हैं । दो दाँतों के बीच का फासला मानो फासला नहीं है LOC है । गाय की तरह रम्भाके शंकर ने कमल से पूछा-

‘अरे भई किस तरफ?’

‘आ रहा हूँ ।’

‘फायदा नहीं है ।’

‘फायदा तो नहीं है, चारा भी नहीं है ।’

‘ठीक है जाओ, पर कह देता हूँ फायदा नहीं है ।’

काले हो गए दाँत देखकर कमल ने कभी उनको घिसकर कष्ट नहीं दिया यह बात समझा जा सकता है । हि-हि करके कमल आगे बढ़ गया ।

आज बड़े-बड़े नेता नहीं आए और उनको कैप्चर करने के लिए मिडिया के लोग भी नहीं आए, यह रास्ते की धूल-मिट्टी, पॉलिथीन बैग, मेंगो फ्रुटी के पेकेटों के लिए दुर्भाग्यजनक खबर है । आज ‘अमीर बाप की बिगड़ी औलादें’ या ‘बिगड़े बाप की अमीर औलादें’ गला तर करने के लिए अपने-अपने रॉकेटों को लेकर निकल आए हैं । बिजली के तारों पर कौवों का संसद बैठा है । हवा सरसरा रही है ।

3 thoughts on “असम बंद

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