जिंदगी के स्याह पन्ने
1 min read✍ संजीव मण्डल
हुस्ना बूढ़ी अपने तीन साल के परनाति को गोद में उठाकर चली आ रही है। कमर झुकी हुई है, वह तनकर चल नहीं पा रही। बुढ़ापे में जवानों की तरह चला जा सकता है भला। परनाति का नाक बहता हुआ देखकर हुस्ना बूढ़ी अपने साड़ी के आँचल से उसका नाक पोंछ देती है। पर फिर नाक बहने लगती है। यह भी एक मुसीबत है। बच्चा बहती नाक से परेशान है।
यह बच्चा उसकी नातिन नादिरा का बेटा है। हुस्ना को गाँव के लोग खासकर इस बात के लिए जानते हैं कि वह घर जमाई रखने में अव्वल है। उसने 25 साल पहले अपनी छोटी बेटी सलिमा के लिए भी घर जमाई खोजा था और पाया भी। अपने घर के पास ही बेटी को जमीन दी और वहाँ बसाया। फिर जब नादिरा नवीं कक्षा में पहुँची तो उसके लिए भी घर जमाई रख लिया। सलिमा का पति बहलुल तो बहुत ही सीधा और स्वभाव का अच्छा है। अपनी जवानी के दिनों में भी उसके पैर नहीं डगमगाए पर नाति जमाई बरकत वैसा नहीं निकला। कुछ सालों से उसको लेकर घर में हमेशा तनाव बना रहता है। गाँव के कई लोग उसे किसी औरत के साथ देखने की बात बता जाते हैं। यह तो मानो हर मर्द की फितरत है कि कुछ पैसा आ जाए, घर-दुआर अच्छा बना ले तो परकीया प्रेम कर घर को नरक बनाने में कोई कसर न छोड़े। गाँव का कमलाकांत मास्टर, भुवन ठेकेदार आदि को लेकर भी कई किस्से हैं। पर अब वे बूढ़े हुए। पर फिर भी कुत्ते की दुम सीधी नहीं हुई। बरकत नया अमीर है। पैसे की गरमी मानो तन-मन को भी गरम कर देती है। फिर तो तन-मन ठंडा करने के लिए पराई औरत का संग पाना जरूरी हो जाता है।