असमीया सप्तकांड रामायण (पद संख्या 176 से 200 तक)
1 min read✍ लिप्यंतरण एवं अनुवाद: डॉ. रीतामणि वैश्य
मूल असमीया पाठ
धैर्य्य येन मेरु गिरि गंभीर सागर।
प्रतापत आदित्य क्रोधत महेश्वर॥
दाने बलि कर्ण हरिश्चंद्र समसर।
बले बुद्धि समान भोगत पुरंदर॥176
हिन्दी अनुवाद
धीरज मेरु पर्वत गंभीर सागर।
प्रताप में सूरज क्रोध में महेश्वर॥
दान में बलि कर्ण हरिश्चंद्र समान।
बल बुद्धि और भोग में हैं पुरंदर॥176