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असमीया सप्तकांड रामायण (पद संख्या 201 से 225 तक)

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लिप्यंतरण एवं अनुवाद: डॉ. रीतामणि वैश्य

मूल असमीया पाठ

सादरे भृंगार धरि प्रक्षालिला पाव।

षड़र्घे करिला पूजा बुलि बहु भाव॥ 

कुसुम चंदन दिब्य बस्त्र अलंकार।

नाना द्रव्य  दिया अर्च्चिलंत बारे बार॥201

हिन्दी अनुवाद

भृंगार जल से प्रक्षालन किये पाव।

पूजा के विविध अर्घों से विविध भाव॥

कुसुमचन्दनदिव्य वस्त्रअलंकार। कई द्रवों से अर्चन किया बारंबार॥201

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