उद्दीप्त जी बहुत ही यथार्थ बात कही आपने। वाकई वर्तमान स्थिति को देखते हुए यही प्रतीत होता है कि मानो जैसे हैवानियत ने इंसानियत का नकाब ओढ लिया है। करूणा, दया, परोपकारिता जैसी मानवीय गुण धीरे- धीरे समाप्त हो चली है। जैसे लगता है संवेदनाएं सुसुप्ता अवस्था में चली गई है।
उद्दीप्त जी बहुत ही यथार्थ बात कही आपने। वाकई वर्तमान स्थिति को देखते हुए यही प्रतीत होता है कि मानो जैसे हैवानियत ने इंसानियत का नकाब ओढ लिया है। करूणा, दया, परोपकारिता जैसी मानवीय गुण धीरे- धीरे समाप्त हो चली है। जैसे लगता है संवेदनाएं सुसुप्ता अवस्था में चली गई है।