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December 20, 2024

इंसानियत ✍ उदिप्त तालुकदार

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आज कहीं दुबक कर बैठी है इंसानियत

क्षत-विक्षत है उसका ज़र्रा-ज़र्रा

इज़ाजत तो न थी उन दलालों को

पर यहाँ तो

इबादत हो रही थी हैवानियत की

ग़लत मुख़्तसर हो रहा है

हर आयात

हर दोहा

वक्त को भी इल्म न था

अपाहिज हो जायेगी इंसानियत

और तख़्त पर बैठेगी हैवानियत !

1 thought on “इंसानियत ✍ उदिप्त तालुकदार

  1. उद्दीप्त जी बहुत ही यथार्थ बात कही आपने। वाकई वर्तमान स्थिति को देखते हुए यही प्रतीत होता है कि मानो जैसे हैवानियत ने इंसानियत का नकाब ओढ लिया है। करूणा, दया, परोपकारिता जैसी मानवीय गुण धीरे- धीरे समाप्त हो चली है। जैसे लगता है संवेदनाएं सुसुप्ता अवस्था में चली गई है।

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