आज कहीं दुबक कर बैठी है इंसानियत क्षत-विक्षत है उसका ज़र्रा-ज़र्रा इज़ाजत तो न थी उन दलालों को पर यहाँ...
कविता
चारों तरफ मृत्यु का तांडव है हरेक के हृदय में विष घुला है मनुष्य को मनुष्य से मिलने...
✍ संजीव मण्डल 1 चाँद चमकता है गुरूर में अविराम रोशनी उधार की ग्रहण का सूरज जलता है पिछवाड़े...
✍ संजीव मण्डल काल का चक्र उसकी वक्रता का लुत्फ मेरी साँसों की आँधी में मानो जलती मशाल है किसकी...