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December 21, 2024

चाँद और संघर्ष

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✍ संजीव मण्डल

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चाँद चमकता है गुरूर में

अविराम

रोशनी उधार की

ग्रहण का सूरज

जलता है

पिछवाड़े श्याम के

कि पट्टी बन

आँखों की

भ्रम में डाले रहता है

क्रम में वह कहता है

शीतल रोशनी

देता है

कोमल फूल

फल रसीला

पेट भर अन्न

पर बात अन्य

गण्य-मान्य

प्रभु चाँद

महिमाशाली

गरिमाशाली

हम उसके छत के नीचे

भाग्यशाली

कि है रोशनी

आँख भर देखने को

और सूरज का अस्तित्व नहीं

जग में

कि वह है ही नहीं

कभी था ही नहीं

और न कभी होगा

जो ग्रहण है वह

युगों तक लंबा खींचा गया

पर कुछ पागल यह कहते हुए पाए गए

कि ग्रहण छटेगा

और बटेगा

असली रोशनी

हर के हिस्से

बराबर-बराबर

श्याम के पीछे से आता हुआ सूरज

क्या कमाल होगा

लाल होगा ।

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